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एक व्यंग्य:स्लीपर का डब्बा

Yade bismil!!
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आप सब ने कभी न कभी  स्लीपर के डिब्बे  में यात्रा की होगी ।

मेरा स्लीपर के डिब्बे से कुछ विशेष लगाव है , शायद बचपन से अब तक इतनी बार स्लीपर में यात्रा कर चूका हूँ की तन मन सब स्लीपर हो गया है.
एक बार AC में भी गया , पर सर घूमने लगा,  समझ नहीं आया की  सर टिकट  के दाम कारन घूम रहा है या  किसी और वजह से।
खैर , स्लीपर पे आते हैं।
अगर किसी को भारतवर्ष के  बारे में जानना  हो तो स्लीपर से अच्छी जगह नहीं हो सकती , ये अंग्रेज बेकार में हिमालय और जंगलों के चक्कर लगाते हैं , असली भारत तो स्लीपर में बसता है !

गांव के दद्दा जब तक अपने जूते उतार के पंखे के ऊपर नहीं रख देते , तब एक उन्हें नींद नहीं आती।  जूते देख के आप के मन में ये प्रश्न उठ सकता है की इसे चुराएगा कौन ?
पर दद्दा को इनसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता , उनके लिए जूते  और तिजोरी एक सामान है।
एक और प्रजाति जो बहुधा डिब्बों में पाई जाती  है वो है WT  यानी की without ticket .  जैसे की जंगल में हिरन होता है ना !! बड़ी बड़ी आँखों वाला, डरा सहमा प्राणी, वैसे ही होता है बेचारा WT वाला।
मुस्कान बिखेरते हुए , आँखों में विनय का भाव  लिए ,सीट  दर सीट भटकता हुआ की अगर ५ इंच जगह भी मिल जाये तो कसम से टिक के सारा रास्ता काट दे !

और  गलती से अगर ये WT वाला किसी की सीट पे थोड़ी सी जगह मांग ले , तो ऐसा लगता है मानो सीट न मांग के, लड़की का हाथ मांग लिया हो।
ये WT इतना एडजस्टेबल प्राणी है , की अगर किसी को आपत्ति न हो तो ये दोनों लोअर सीट के बीच में अपनी चादर बिछा के आराम से लेट सकता है !
बताइए इतना सहिष्णु प्राणी कही मिलेगा , जो आपके जूते के पास भी , बिना शिकायत किये लेट जाता हो !!

स्लीपर डिब्बे के अंदर एक बहुत रहस्यमई सीट होती है , ‘7’ नंबर।

यात्रिओ से ले के पुलिस वालो तक, किसी को नहीं पता रहता की ये सीट किसकी है , पर हर कोई इसे अपनी बताता है।
और जुमला एक ही , की TT  ने बोला है। बेचारा TT, सीट एक , दावेदार कई।
एक बार झांसी से दिल्ली  आते हुए , 7 नंबर सीट पे एक कॉलेज का लड़का और पुलिस वाला बैठा था , दोनों का कहना था  की  सीट उनकी  है , इतने में एक आंटी जी आयी , उन्होंने बड़े रोब से सीट खाली करने  को बोला , और कहा सीट उनकी है।  बड़ी अजीब सिचुएशन थी , रात को 11 बज रहे थे , TT पिछले 4 घंटो से किसी को भी नहीं दिखा , और तीनो इस बात पे अड़े थे  की ये सीट उनकी है।
कोई नतीजा निकलता न देख , आंटी ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए लड़के को समझाया  ‘ देख बेटा , नीचे बिछा  ले, बाद में वो भी नहीं  मिलेगी ‘
चूँकि हमारे यहां हमेशा यही सिखाया जाता है की बड़ो की आज्ञा का पालन करो , लड़के ने भी , हथियार  डालते हुऐ , नीचे चादर बिछा  के शवासन मुद्रा में लेट गया !

अब बताइए , जहां बेटा बाप की नहीं मानता वहां आज्ञा अनुसरण  का इत्ता बेहतरीन नमूना  आपको कहीं और मिलेगा क्या!!

कुछ सीट नंबर ऐसे होते है , जो की कन्फर्म होने के बाद भी कोई खुशी नहीं देते।
जैसे की ,1 से 8 और 65 से 73.
आपने नॉर्वे देश (नॉर्वे) के बारे  में सुना होगा , जहां 6 महीने दिन रहता  है , इन सीटों को भी उसी की तर्ज पे डिज़ाइन किया गया  है।
इन सीटों पे कभी रात नहीं होती , क्योंकि दरवाजों के पास का बल्ब पूरी तेजी और मुस्तैदी के साथ जलता रहता है , मजाल है की अभी कम्भख्त फ्यूज  मिले , सारी रात आपके दिल के साथ जलता रहेगा

लोकभाषा  के प्रचार में जितनी भूमिका इन सीट्स ने निभायी है , उतनी किसी ने नहीं , कई बार भीड़ ज्यादा होने पर हमारे लोकल यात्री इन सीट्स के आस पास इकठ्ठा हो जाते हैं , और कई बार आपसे पूछ लेते हैं
‘काय भइया , झांसी निकल गओ का ‘ या ‘राजश्री  है का ‘
अब बताइए अपनी लोकसंस्कृति को जानने का इससे अच्छा माध्यम कोई हो सकता है क्या , कई बार तो अब हमारे मुंह से निकल आता है ‘ काय बाथरूम खाली है का !!!

स्लीपर  डिब्बे का एक बड़ा भाई है , ”जनरल डिब्बा”

जनरल डिब्बा बहुत ही सहनशील प्राणी है, मुझे लगता है की बाबा रामदेव को योग की प्रेरणा जनरल डिब्बे से ही मिली होगी।
4 की सीट पर 8 बैठे है , और सामने वाली सीट पे भी 8 बैठे है, चेहरे पे शिकन नहीं है, भाई चारा इत्ता की पूरी और खैनी दोनों मिल बाँट के खाई जा रही है, और तो और पड़ोसियों का सम्मान करते हुए ऊपर की सीट पे जो 8   भाई बैठे है उनका भी ख्याल रखा जा रहा है

राजयोग हर एक के बस की बात नहीं , जनरल डिब्बे में भी राजयोग उन्ही को  मिलता है , जिनके पास लुंगी होती है

डार्विन ने सिद्धांत दिया था ‘maximum utilisation of available resources’ ,बाकी दुनिया ने तो सिर्फ पढ़ा था,असली इस्तेमाल तो हिन्दुस्तानिओ   ने ही किया है ।
ऊपर नीचे की  सब सीटें भरने के बाद ,कई वीर लुंगी निकाल  के , ऊपर की  सीट में झूले की  तरह बाँध लेते है , और  उसमे  आराम से लेट जाते हैं ।
सम्राट अशोक को भी उतना सुख नहीं मिला होगा , जितना इन भाईओ को मिलता है ।

जनरल में सामान रखने वाली जगह तो देखी   होगी आपने। , बेहद संकरी सी होती है, हमारे यहां तो लोग उसमे भी लेट के चले जाते हैं , मजाल  है की कोई गिर जाये।
Newton   के ग्रेविटी के सारे नियम फ़ैल हैं यहाँ , यहां कोई चीज नीचे नहीं आती.

300 मूवी देखि होगी आपने , Xerxes  के दूत को Leonidas ने मार दिया था , Xerxes का दूत बेवकूफ था , हिन्दुस्तानिओ से थोड़ी समझदारी सीख ली होती तो जान  से हाथ  नहीं धोना पड़ता

हमारे यहां जनरल डिब्बे में हर आदमी Leonidas है, लेकिन फिर भी ,हमारे  पास ऐसे  दूत  हैं  जो  बकायदा इन डिब्बों  घुस के ,वापस भी आ जाते हैं
ये हैं  हमारे चाय समोसे वाले भैया , जिन डिब्बों में पुलिस और TT भी नहीं चढ़ते ,ये उन डिब्बों अंदर तक जा के सामान बेच के वापस आ जाते हैं

जापान की ईमानदारी  का ताना  बार बार दे के जो लोग हमें कोसते हैं , उन्हें जनरल में आके देखना चाहिए , इत्ती सारी मुसीबतों बावजूद चेहरे  पे हंसी और अधिकतर के पास टिकट होता है , ये जानते हुए भी की TT नहीं आएगा।

गरीब हैं लेकिन बेईमान नहीं है हमारे देशवासी

अब बताइए दोस्तों, जीवन का इतने बेहतरीन अनुभव और यादें आपको AC में मिलेंगी क्या ?

स्लीपर का डब्बा हमारा हिन्दुस्तांन है , जहां लोग चढ़ते हैं , कभी लड़ते भी हैं , लेकिन आपस में थोड़ी देर में एडजस्ट होके सफर पूरा करते हैं
कुछ खट्टी यादें हैं , कुछ मीठी भी , लेकिन जिंदगी भी तो यही हैं ।
आपको अपने देश की वास्तविक स्थिति कोई नेता या न्यूज़ चैनेल नहीं बताएगा , ये जनरल और स्लीपर के डब्बे ही आपको वास्तविक स्थिति का ज्ञान कराएँगे ।

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